एक आर्य में सभी गुण
भूपेश आर्य
_बाधाओं से कौन नहीं घबराता_―
आर्यसमाजी।
_घोर विपत्ति में भी कौन धैर्य धारण करता है_―
आर्यसमाजी
_कौन ऐसा व्यक्ति है जो कभी नास्तिक नहीं हो सकता_―
*आर्यसमाजी*।
_असत्य को छोड़कर सत्य को कौन धारण करता है_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन ऐसा है जो कभी गलत मार्ग पर नहीं चलता_―
*आर्यसमाजी*।
_देश हित में कौन अपनी जान तक देने को तैयार रहता है_―
*आर्यसमाजी*।
_घोर संकट में भी धर्म को जो नहीं छोड़ता_―
*आर्यसमाजी*।
_धर्म के दस लक्षण (धैर्य, क्षमा, जितेन्द्रियता, इन्द्रियनिग्रह, वाह्य व अन्तःकरण की पवित्रता, चोरी न करना, बुद्धि को बढ़ाने वाले शास्त्रों का अध्ययन, सत्य विद्या का बढ़ाना, सत्य बोलना, क्रोध न करना) का कौन पालन करता है_―
*आर्यसमाजी*।
_गेंन्द के नीचे गिरकर ऊपर उठने के समान अपने आपको पतित होने से कौन बचा लेता है_―
*आर्यसमाजी*।
_सुख–दुःख, हानि–लाभ, मान–अपमान आदि में कौन समान रहता है_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो माँस, अण्डे, शराब तथा नशीले बुद्धिनाशक व तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करता, व इनसे दूर रहता है_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो अपना कीमती समय ईश्वर भक्ति, यज्ञ, सत्संग, स्वाध्याय, परोपकार आदि शुभ कार्यों में लगाता है तथा निन्दा, चुगली, ईर्ष्या, द्वेष, छल-कपट, क्रोध, असत्य भाषण, घृणा आदि मानसिक दुर्विचारों में फँसकर अपना कीमती समय बर्बाद नहीं करता_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो अपनी दिनचर्या का आरम्भ―प्रातः जल्दी उठना, सूर्योदय से पूर्व शौच, दातुन, स्नान, सन्ध्या, आसन, प्राणायाम, तथा यज्ञ आदि से करता है_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो अपने खाली समय को गरीबों की भलाई, परोपकार, गिरों हुओं को ऊपर उठाना, वैदिक सत्संग, स्वाध्याय, आदि सत्कार्यों में लगाता है_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो अपने माँ–बाप की सेवा में तत्पर रहता है तथा उन्हें किसी तरह से कष्ट नहीं पहुँचाता_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो अपने परोपकार के कार्यों का ढिंढोरा नहीं पीटता,'नेकी कर और कुएँ में डाल' वाला सिद्धान्त अपनाता है_―
*आर्यसमाजी*।
_कौन है जो किसी व्यक्ति के भलाई के कार्यों में दोष नहीं निकालता_―
*आर्यसमाजी*।
*ये सभी गुण एक आर्य में ही पाये जा सकते हैं, अन्यथा नहीं। अतः अपने को आर्य कहलवाने के लिए इन कसौटियों पर कस लो कि आप पक्के आर्य हो या कुछ अभी कमी है। अगर कमी है तो उसको दूर करने का प्रयास करो।*
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