ओ३म्
3 नवम्बर, 2016 को हम अजमेर के ऋषि मेले में पहुंचे थे। हमारे साथ देहरादून के आर्य विद्वान डॉ0 कृष्ण कान्त वैदिक थे। दिल्ली से आर्य साहित्य के विख्यात प्रकाशक श्री अजय आर्य, मैसर्स विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द भी दिल्ली से रेल यात्रा में हमारे साथ हो गये थे।
अजमेर पहुंच कर हम काफी समय तक श्री अजय आर्य जी के पुस्तकों के स्टाल पर बैठे थे। अचानक हमने वहां हिण्डोन सिटी के प्रसिद्ध ऋषिभक्त एवं वैदिक साहित्य के प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य जी को हमारी ओर आते देखा तो हमने उनसे स्टाल पर आने का निवेदन किया।
हम तीन व्यक्ति काफी देर तक श्री अजय आर्य जी के पुस्तक-स्टाल पर बैठ कर साहित्य विषयक चर्चायें करते रहे। उस अवसर पर हमने कुछ चित्र लिये थे। उनमें से दो चित्र यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
श्री प्रभाकर देव आर्य जी और श्री अजय आर्य जी कोई साधारण ऋषिभक्त नहीं है अपितु इनके प्रकाशन से विश्व का सारा आर्यजगत लाभान्वित होता है।
दोनों प्रकाशकों ने आर्यसमाज की जो सेवा की है वह स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। इन प्रकाशकों का कार्य व पुरुषार्थ अत्यन्त स्तुत्य एवं सराहनीय है।
यह दोनों ऋषिभक्त अपने कार्यों से स्वयं ही सम्मानित एवं आदरणीय हैं। इनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये व इनका जितना मान-सम्मान व अभिनन्दन किया जाये, वह कम होगा।
हम ईश्वर से इनके लिये हार्दिक शुभकामनाओं सहित इनके अपने-अपने परिवारजनों सहित स्वस्थ जीवन एवं दीर्घायु, सुख व समृद्धि की कामना करते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
आर्यसमाज के दो सुदृढ़ स्तम्भ जिनसे समूचा आर्यजगत लाभान्वित है
===========3 नवम्बर, 2016 को हम अजमेर के ऋषि मेले में पहुंचे थे। हमारे साथ देहरादून के आर्य विद्वान डॉ0 कृष्ण कान्त वैदिक थे। दिल्ली से आर्य साहित्य के विख्यात प्रकाशक श्री अजय आर्य, मैसर्स विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द भी दिल्ली से रेल यात्रा में हमारे साथ हो गये थे।
अजमेर पहुंच कर हम काफी समय तक श्री अजय आर्य जी के पुस्तकों के स्टाल पर बैठे थे। अचानक हमने वहां हिण्डोन सिटी के प्रसिद्ध ऋषिभक्त एवं वैदिक साहित्य के प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य जी को हमारी ओर आते देखा तो हमने उनसे स्टाल पर आने का निवेदन किया।
हम तीन व्यक्ति काफी देर तक श्री अजय आर्य जी के पुस्तक-स्टाल पर बैठ कर साहित्य विषयक चर्चायें करते रहे। उस अवसर पर हमने कुछ चित्र लिये थे। उनमें से दो चित्र यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
श्री प्रभाकर देव आर्य जी और श्री अजय आर्य जी कोई साधारण ऋषिभक्त नहीं है अपितु इनके प्रकाशन से विश्व का सारा आर्यजगत लाभान्वित होता है।
दोनों प्रकाशकों ने आर्यसमाज की जो सेवा की है वह स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। इन प्रकाशकों का कार्य व पुरुषार्थ अत्यन्त स्तुत्य एवं सराहनीय है।
यह दोनों ऋषिभक्त अपने कार्यों से स्वयं ही सम्मानित एवं आदरणीय हैं। इनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये व इनका जितना मान-सम्मान व अभिनन्दन किया जाये, वह कम होगा।
हम ईश्वर से इनके लिये हार्दिक शुभकामनाओं सहित इनके अपने-अपने परिवारजनों सहित स्वस्थ जीवन एवं दीर्घायु, सुख व समृद्धि की कामना करते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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