वेद - वैदिक समाज जानकारी

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वेद

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सृष्टि के आदि में परमात्मा ने चार ऋषियों को चारों वेदों का ज्ञान उनके अन्तः करण में दिया। एक-एक ऋषि को एक-एक वेद का ज्ञान दिया।

वेद चार हैं- 

१.ऋग्वेद, २.यजुर्वेद, ३.सामवेद, ४.अथर्ववेद। चारों वेदों के बारे में कुछ जानकारियाँ नीचे दी गई है। कृपया आप पढ़िये।

चार वेद


जिज्ञासा १ – कुछ विद्वान् वेदों का काल पाश्चात्य विद्वानों के आधार पर २००० या ३००० ईसा पूर्व ही मानते हैं, क्या यह ठीक है?

और मैक्समूलर ऋग्वेद को दुनिया के पुस्तकालयों की सबसे पुरानी पुस्तक मानता है, क्या मैक्समूलर की यह मान्यता ठीक है?
क्या हम आर्यों को भी इसी के अनुसार मानना चाहिए? कृपया, मार्गदर्शन करें।

समाधान- वेदों का काल जबसे मानवोत्पत्ति हुई है, तभी से है। आज इस काल को महर्षि दयानन्द के अनुसार १ अरब ९६ करोड़ ८ लाख ५३ हजार ११५वाँ वर्ष (२०१४ के अनुसार ) चल रहा है।

पाश्चात्य विद्वानों द्वारा की गई वेदों की काल गणना ठीक नहीं है, क्योंकि इनके द्वारा की गई काल गणना निराधार, पक्षपात पूर्ण और कपोलकल्पना मात्र है।

इस गणना के लिए इन विद्वानों के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है। जब हमारा लाखों वर्ष पुराना इतिहास सप्रमाण हमें प्राप्त हो रहा है, तब हम इनकी कुछ हजार वर्ष पूर्व की बात कैसे स्वीकार कर लें?

 हाँ, इनकी बात को वह स्वीकार कर सकता है जो अपने ऋषियों, महापुरुषों से प्रभावित न होकर, पाश्चात्य संस्कृति व विद्वानों से प्रभावित रहा हो।

    आप इस ऋग्वेद के चित्र पर क्लिक करके ऋग्वेद पढ़ सकते हैं👇

वेद

   


                          कुछ लोगों की निराधार व अल्पज्ञान भरी बात है कि ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई और इसके बाद अन्य वेदों की।

ऐसी मान्यता वाले लोग अथर्ववेद को तो ऋग्वेद से बहुत बाद का मानते हैं। इस बात का भी उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

               हमारे ऋषियों के अनुसार चारों वेदों का काल एक ही है, एक ही साथ एक ही समय परमेश्वर ने ४ ऋषियों के हृदयों में चारों वेदों का अलग-अलग ज्ञान दिया,

अर्थात् अग्नि ऋषि को ऋग्वेद का, वायु ऋषि को यजुर्वेद का, आदित्य ऋषि को सामवेद का और अङ्गिरा ऋषि को अथर्ववेद का ज्ञान दिया।

 ऋषियों ने ऐसा कहीं नहीं लिखा कि चारों वेदों की उत्पत्ति अलग-अलग समय में हुई। हमें वेद व ऋषियों के अनेक प्रमाण प्राप्त हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि चारों वेद एक ही समय में उत्पन्न हुए।
वेद
वेद

जैसे-
यस्मिन् वेदा निहिता विश्वरूपा:। -अथर्व. ४.३५.६
ब्रह्म प्रजापतिर्धाता लोका वेदा: सप्त ऋषयोग्नय:।
-अथर्व. १९.९.१२

इन दोनों मन्त्रों में वेद शब्द का बहुवचनान्त वेदा: शब्द प्रयुक्त हुआ है। यह वेदा: शब्द चारों वेदों का संकेतक है।

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: ऋच: सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तस्मादजायत।।
-ऋ. १०.९०.९, यजु. ३१.७

यस्मिन्नृच: साम यजुœंषि यस्मिन्
प्रतिष्ठिता रथानाभाविवारा:।           -यजु. ३४.५

यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन्।
सामानि यस्य लोमान्यथर्वाङ्गिरसो मुखम्-
स्कम्भं तं ब्रूहि कतम: स्विदेव स:।।
-अथर्व. १०.७.२०

स्तोमश्च यजुश्चऽऋक् च साम च बृहच्च रथन्तरञ्च।
-यजु. १८.२९

ऋचो नामास्मि यजुंœषि
नामास्मि सामानि नामास्मि।        -यजु. १०.६७

स उत्तमां दिशमनुव्यचलत्।।
तमृचश्च सामानि च यजंूषि च ब्रह्म चानुव्यचलन्।। 
-अथर्व. १५.६.७-८

एवं वा अरेऽस्य महतो भूतस्य नि:श्वसितमेतद् 
यदृग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस:।।
श.ब्र. १४.५.४.१० व बृहद्.उप. ३४.१०

तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽथर्ववेद:।
– मु. ५.१.१.५
इत्यादि अनेक वेद व ऋषियों के प्रमाण सिद्ध करते हैं कि चारों वेदों का काल एक ही है।

    आप इस यजुर्वेद के चित्र पर क्लिक करके यजुर्वेद पढ़ सकते हैं👇

वेद
यजुर्वेद

                     आप मैक्समूलर की मान्यता के विषय में भी जानना चाहते हैं कि उनकी मान्यता ठीक है या नहीं।

मैक्समूलर ने तथाकथित भाषाशास्त्र के आधार पर वेदों के रचना काल की सम्भावना सर्वप्रथम १८५९ ई.  में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘ए हिस्ट्री ऑफ एशियट संस्कृत लिटरेचर’ में की थी।

 उनकी यह कालावधि किसी तथ्य पर आश्रित न होकर विशुद्ध कल्पना पर अवलम्बित थी, किन्तु यह मान्यता इतनी बार दुहरायी गयी कि परवर्ती समय में आधुनिक इतिहासकारों में बिना सोचे-समझे स्थापित-सी मानी जाने लगी,

लेकिन स्वयं मैक्समूलर ने १८८९ में ‘जिफोर्ड व्याख्यानमाला’ के अन्तर्गत अपने इस मत पर सन्देह प्रकट किया था और ह्विटनी जैसे पाश्चात्य व प्रो. कुञ्जन राजा प्रभृति भारतीय इतिहासकारों ने भी मैक्समूलर के भाषाशास्त्र के आधार पर वेदों के काल सम्बन्धी मत का जोरदार खण्डन किया था।

    आप इस सामवेद के चित्र पर क्लिक करके सामवेद पढ़ सकते हैं👇

वेद
सामवेद
       
                दूसरा जो मैक्समूलर ऋग्वेद को दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तक कहता है, उसकी यह बात वेदों की रचना के सम्बन्ध में भ्रम पैदा करने के उद्देश्य से कही गई प्रतीत होती है।

ऋषियों-महर्षियों के आधार पर आर्यसमाज की दृढ़ मान्यता के विपरीत ये वेदों का क्रमिक विकास सिद्ध करते हैं, जिससे वेद ईश्वरीय रचना न होकर मानवीय रचना सिद्ध हो सके।


इस सारे प्रसंग को मैक्समूलर की इन मान्यताओं के सन्दर्भ में भी देखा जाना चाहिए कि वह वेदों को बाइबिल से निचली श्रेणी का मानता है।

कैथोलिक कॉमनवैल्थ के दिये गये एक साक्षात्कार में यह पूछे जाने पर कि विश्व में कौन-सा धर्मग्रन्थ सर्वोत्तम है, तो मैक्समूलर ने कहा-
“There is no doubt, however, that ethical teachings are far more prominent in the old and New Testament than in any other sacred book.” He also said “It may sound prejudiced, but talking all in all, I say the New Testament. After that, I should place the Quran which in its moral teachings is hardly more than a later edition of the New Testament. Then would follow…. according to my opinion, the Old Testament, The southern Buddhist Tripitika….. The Veda and the Avesta.” (LLMM, Vol. II, PP. 322-323)
अर्थात् ‘‘इसमें कोई सन्देह नहीं कि यद्यपि किसी भी अन्य ‘पवित्र पुस्तक’ की अपेक्षा (ईसाइयों के धर्म ग्रन्थ) ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट में नैतिक शिक्षायें प्रमुखता से विद्यमान् हैं।

उसने यह भी कहा- यह भले ही पक्षपातपूर्ण लगे, लेकिन सभी दृष्टियों से मैं कहता हूँ कि न्यू टेस्टामेंट सर्वोत्तम है। इसके बाद मैं कुरान को कहूँगा जो कि अपनी नैतिक शिक्षाओं में न्यू टेस्टामेंट के नवीन संस्करण के लगभग समीप है।

उसके बाद….. मेरे विचार से ओल्ड टेस्टामेंट (यहूदियों का धर्मग्रन्थ), दी सदर्न बुद्धिस्ट त्रिपिटिका, (बौद्धों का धर्मग्रन्थ) फिर वेद और अवेस्ता (पारसियों का ग्रन्थ) है।’’

    आप इस अथर्ववेद के चित्र पर क्लिक करके अथर्ववेद पढ़ सकते हैं👇

वेद
अथर्ववेद
           
     
                       अत: आर्यों को वेद के सन्दर्भ में मैक्समूलर जैसे लोगों के मत को उद्धृत करने से बचना चाहिए। इसके स्थान पर ऋषियों-महर्षियों के मत को रखना चाहिए।

लेकिन अगर कोई आर्य वेदों की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए मैक्समूलर को इस रूप में उद्धृत करता है कि ‘मैक्समूलर भी वेदों की प्राचीनता के प्रसंग में एक सत्य को अस्वीकार न कर सका, उसे भी ऋग्वेद को प्राचीनतम पुस्तक स्वीकार करना पड़ा’ इस रूप में बात रखी जा सकती है।

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