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आर्य समाज की मान्यताएँ

                 आर्य समाज की  मान्यताएँ

आर्य समाज की मान्यताएँ
Maharshi Dayanand Saraswati
यहाँ पर आर्य समाज की मान्यतायें क्या हैं इसके बारे में दिया गया है कि आर्य समाज क्या क्या मानते हैं?

ईश्वर


1.ईश्वर एक ही है और निराकार है।

2.ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूप है।

3.ईश्वर सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता एवं संहारकर्ता है।

4.ईश्वर सर्वज्ञ,सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामी और सर्वशक्तिमान है।

5.ईश्वर जीवों का कर्मफल प्रदाता है।

6.ईश्वर का मुख्य निज नाम ओ३म् है, पर गुणवाचक अनेक नाम है।

7.ईश्वर न्यायकारी एवं दयालु है।पर पापों को क्षमा नहीं करता है।

8.ईश्वर अवतार नहीं लेता है, वह अजन्मा,अनन्त, अजर,अमर,नित्य,पवित्र,निर्विकार ,अनादि एवं अनुपम है।

जीव (आत्मा)


9.जीव चेतन एवं अल्पज्ञ है।

10.जीवों की संख्या अनन्त है।

11.जीव न कभी मरता है और न कभी उत्पन्न हुआ है।

12.आत्मा एवं शरीर के संयोग का नाम जन्म एवं वियोग का नाम मृत्यु है।

13.शरीर के नष्ट होने पर जीव नष्ट नहीं होता है।

14.जीव सत् चित् स्वरूप है।

15.जीव अपने कर्मों के अनुसार अच्छी व बुरी योनी में जाता है।

16.जीव कर्म करने में स्वतंत्र है और फल भोगने में ईश्वर की व्यवस्था के आधीन है।

17.इच्छा,द्वेष,सुख,दुःख,प्रयत्न और ज्ञान जीव के लक्षण है।

18.जीव सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकता अपितु उसके भोग के लिए सृष्टि बनी है।

प्रकृति


19.यह भौतिक जगत (सृष्टि) प्रकृतिका बना हुआ है।

20.सत्व,रज एवं तम इन तीनों तत्त्वों (परमाणुओं)के सामूहिक नाम को प्रकृति कहते हैं।

21. परमाणु जड़ है तथा ज्ञान रहित है ।

22.परमाणु अनादि और अनंत है, न कभी उत्पन्न हुए और न कभी नष्ट होते हैं ।

23.जब परमाणु अलग अलग हो जाते हैं तो प्रलय हो जाती है।

24. परमाणुओं के संयोग से ईश्वर सृष्टि की रचना करता है।

वेद


25. हमारा धर्म ग्रंथ वेद है ।

26. वेद चार हैं -ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनमें क्रमशः 10522, 1975, 1875, एवं 5977 मंत्र हैं।

27. सृष्टि के प्रारंभ में परमात्मा ने अग्नि ,वायु ,आदित्य और अंगिरा इन चार ऋषियों पर चारों वेदों का प्रकाश किया।

28.  वेदों के सिद्धांत सृष्टि नियमों के अनुकूल है ।

29 . वेदों में इतिहास नहीं है ।

30. वेद स्वतः प्रमाण है ।

31. केवल मंत्र भाग ही वेद हैं, ऋषियों द्वारा रचित ब्राह्मण ग्रंथ उनकी व्याख्या हैं ।

32. वेदों के सिद्धांत हर मानव के लिए, हर काल के लिए तथा हर देश के लिए हैं।

33.  वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है।

 34. उपवेद चार हैं -  ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद ,सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का अर्थवेद है ।

35. वेद संस्कृत भाषा में नहीं हैं किंतु देववाणी में हैं।

 36. संस्कृत भाषा वेदों की भाषा से निकली है और अन्य सब भारतीय भाषाएं संस्कृत से।

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