कौन कहता है गीता में जिहाद है?
_पुस्तक लेखक :- विष्णु विशाल शर्मा_
_भूमिकाकार:- भवितव्य आर्य "मनुगामी"_
सामी सभ्यताओं की इस्लामी परम्परा में गैर-मुस्लिमों (काफिरों) को जीवन का अधिकार नहीं है इसीलिये उनके मजहबी ग्रन्थ में अल्लाह की ओर से उनके विरूद्ध जिहाद (मजहबी युद्ध) की खुली घोषणा है,
जब तक कि समूचे गैर-मुस्लिम विश्व को अल्लाह के मार्ग में झुकाया न जा सके। कुरान में काफिरों(हिन्दू आदि) का अन्तिम ठिकाना जहन्नुम की आग बताया गया है, जिसके लिये वे काफिर सदा जलने वाले ईंधन हैं।
कुरान की जिन आयतों में काफिरों के विरूद्ध इस प्रकार के आदेश मिलते हैं, मुस्लिम मौलवियों द्वारा नित्य प्रति उनका मनमाना अनुवाद करके उनकी वास्तविकता पर पर्दा डालने का असफल प्रयास किया जाता रहा है।
परन्तु यह छद्म प्रयास केवल साहित्यिक विलास तक ही सीमित रहता है, व्यवहारिक जीवन में एक कथित कट्टर मुस्लिम द्वारा अल्लाह की उन्हीं आज्ञाओं का अक्षरशः पालन किया जाता है।
प्रतिक्रियास्वरूप सनातनधर्मियों द्वारा जब कुरान की इन आज्ञाओं पर प्रतीकारात्मक भावना से प्रश्न किये जाते हैं, तो मुस्लिम मतावलम्बियों द्वारा अपने बचाव में उन्हें श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण द्वारा दिये गये अधर्म के विरूद्ध धर्मयुद्ध के उपदेशों का तुलनात्मक हवाला दिया जाता है।
मजहबी लोगों द्वारा अपने बचाव के लिए गीता के धर्मयुद्ध की आड़ लेना तो भलीभाँति समझा जा सकता है, परन्तु स्थिति तब और भयावह हो जाती है, जब कुछ विवेकभ्रष्ट सेकुलर हिन्दूओं द्वारा भी गीता पर युद्ध का आक्षेप करते हुए कुरान के जिहाद को वैध ठहराने का कुत्सित प्रयत्न किया जाता है।
विवेकभ्रष्टता का स्तर इतना उच्च है कि इन्हें लोक में यह भी नहीं दिखता कि *एक ओर जहाँ श्रीमद्भागवत गीता के अमृतरस का पान करने वाला व्यक्ति यदि अतिशयता को प्राप्त हो तो वह हिंसा से पूर्णतः विरक्त होकर सन्यास भाव को प्राप्त होता है,
वहीं दूसरी ओर मजहबी ग्रन्थ में अतिशय श्रद्धावान युवा सांसारिक शान्ति को भंग करने को तत्पर आतंक के मार्ग पर जाते हुए देखे गये हैं।*
फिर गीता के धर्मयुद्ध और मजहबी ग्रन्थ के जिहाद की तुलना करना मानसिक विकलांगता से बढ़कर और कुछ नहीं है।
इसलिये भागवत गीता के विरूद्ध फैलाये जाने वाले सनातनविरोधी इन भ्रमात्मक प्रचारों और मिथ्या आक्षेपों का निवारण आवश्यक हो जाता है।
अतः हमारे परम मित्र युवा धर्मानुसन्धाता श्री *‘विष्णु विशाल शर्मा’* जी द्वारा इस लघु-पुस्तिका में विपुल सन्दर्भों के साथ इन भ्रमात्मक प्रचारों तथा मिथ्या आक्षेपों का समुचित उत्तर देने का सफल प्रयत्न किया गया है।
जिसके लिये वे हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं। इस लघु-पुस्तिका का मूल्यांकन सुधि पाठकगण के ही हाँथों में है। आशा है इससे वे न केवल स्वयं लाभान्वित होंगे बल्कि जन-जन तक इसे प्रचारित करके अन्यों को भी यह सुअवसर उपलब्ध करवाने में सहायता करेंगे।
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