वैदिक भजन
गति जीव आत्मा की कोई समझाएकहाँ से ये आए कहां लौट जाए २
कभी इसका आना जाना किसी ने न जाना २
कहाँ का निवासी है ये कहां है ठिकाना २
किसी को भी कोई अपना हो...
किसी को भी कोई अपना पता न बताए
कहाँ लौट जाए
गति जीव आत्मा की...
मिली एक नगरी इसको अयोध्या निराली २
जो है आठ चक्रों और नौ द्वारों वाली २
सिर्फ चार दिन ही इसका हो...
सिर्फ चार दिन ही इसका बादशाह कहलाए
कहाँ लौट जाए
गति जीव आत्मा की...
प्रभु ने हज़ारों तोफे बनाकर दिए हैं २
कुदरती नज़ारे सारे इसी के लिए हैं २
इन्हें छोड़ क्यों जाता है हो...
इन्हें छोड़ क्यों जाता है समझ में न आए
कहाँ लौट जाए
गति जीव आत्मा की...
*पथिक* ये प्रभु की माया प्रभु जानता है २
प्रभु के सिवा न कोई पहचानता है २
जो महान शक्ति सारे हो...
जो महान शक्ति सारे विश्व को चलाए
कहाँ लौट जाए
गति जीव आत्मा की...२
स्वर एवं रचना - *सत्यपाल पथिक*
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