"ईश्वर निराकार, सर्वव्यापक व सर्वज्ञ है।"
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ईश्वर कैसा है ? यह तो सभी मानते हैं कि ईश्वर ने संसार बनाया। सूर्य चांद से लेकर छोटी से छोटी चीज को भी ईश्वर बनाता, कायम रखता और बिगाड़ता है। वेदांत दर्शन में व्यास जी कहते हैं --
'जन्माद्यस्य यतः' १/१/२
अर्थात ईश्वर वह है जो सृष्टि को बनाता, कायम रखता और बिगाड़ता है। इससे मालूम होता है कि ईश्वर सूक्ष्म से सूक्ष्म अर्थात निराकार है।
यदि सूक्ष्म न होता तो सूक्ष्म से सूक्ष्म चीज को कैसे बनाता ? मोटी चीज पतली चीज को नहीं बना सकती। सोने चांदी के बारीक गहनों को कुल्हाड़ी से नहीं बना सकते।
जितना बारीक जेवर होगा उससे भी बारीक औजार चाहिए। स्थूल वस्तु में सूक्ष्म वस्तु का प्रवेश हो सकता है परंतु सूक्ष्म चीज में स्थूल का नहीं।
ईश्वर की कारीगरी को देखो, कैसी सूक्ष्म है ? चींटी से भी कई गुना छोटे जीव हैं। उनके शरीरों में सैंकड़ों अंग हैं। उनको हम खुर्दबीन से भी नहीं देख सकते।
इन चीजों को बनाने वाला और इन को कायम रखने वाला बहुत सूक्ष्म अर्थात निराकार होना चाहिए। इसलिए ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है।
छोटे से छोटे परमाणु के भीतर भी विराजमान है। फूलों के रंगों को तुमने देखा होगा। कितना बारीक काम है ? रंगरेज अपनी बारीक कूची से भी ऐसा नहीं रंग सकता।
केवल निराकार और सर्वव्यापक ईश्वर ही रंग सकता है। इससे इतनी बातें मालूम होती हैं कि ईश्वर निराकार है, सर्वव्यापक है, सर्वज्ञ है। घट घट के भीतर है और सर्वशक्तिमान है, क्योंकि शक्ति न हो तो कैसे बनावे ?
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स्रोत - वैदिक मान्यताएं।
लेखक - पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय।
प्रस्तुति - आर्य रमेश चन्द्र बावा।
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