अंधविश्वास का पाखण्ड(लोक कथा) - वैदिक समाज जानकारी

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Friday, 20 December 2019

अंधविश्वास का पाखण्ड(लोक कथा)

अंधविश्वास का पाखण्ड(लोक कथा)


एक बुढ़िया थी वह कुछ ऊंचा सुनती थी ! उसके बेटे की शादी हुये तीन-चार साल हो चुके थे कोई बच्चा नहीं हुआ था बुढ़िया परेशान एक दिन वह गांव में एक ब्राम्हण भगत के यहां उसके दरबार में गयी !

भगत के ऊपर देवता की सवारी थी बुढ़िया बोली महाराज मेरी बहु को अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ आप ही कोई उपाय बताओ !

भगत बोला जा गऊमूत लेकर आ ! बुढ़िया ऊंचा सुनती थी। बुढ़िया के ऊंचा सुनने के कारण गऊमूत को बहुमूत समझकर वह घर गयी और अपनी बहु से बोली ओ बहुरिया एक कटोरे में अपना मूत देदे !

 बहु ने पूंछा मूत किस लिये बुढ़िया बोली भगत के सिर देवता खेल रहे उनने मंगाया है.! बहु ने पीछा छुड़ाने के लिये कटोरे में मूत्र अपनी सास को दे दिया !

वह बुढ़िया मूत्र का बर्तन लेकर वापिस भगत के दरबार में गयी ! भगत के सिर पर खेल रहा देवता बोला बुढ़िया ले आयी ? बुढ़िया बोली हां महाराज भगत बोला ला दे !

 बुढ़िया ने वह मुत का बर्तन भगत को दिया ! भगत ने उस मूत पर कुछ मंत्र बड़बड़ाये और खुद पिया और सबको थोड़ा-२ पिलाया और अपने ऊपर और सबके ऊपर छिड़का और

बुढ़िया से कहा कि तु भी पी इस पवित्र प्रसाद को और अपने ऊपर छिड़क ले और बचा हुआ अपनी बहु को पिला दे तेरी बहु को बच्चा हो जायेगा.!

 बुढ़िया खुशी -२ घर गयी और बहु से बोली यह प्रसाद पी ले बहु आयी और देखा कि यह तो उसी का मूत है ! बहु ने साफ इनकार कर दिया किवह अपना मूत नहीं पियेगी !

 बुढ़िया बोली वहां दरबार में देवता ने पिया मैंने पिया पर तू क्यों नहीं देवता का कहना मानती.! बहु बोली देवता के सात पुरखे मूत पीलें और तुम्हारे सात पुरखे पीलें पर मैं तो अपना मूत नहीं पियूंगी..!

बुढ़िया परेशान वह फिर ब्राम्हण भगत के दरबार में गयी जहां देवता की सवारी थी ! भगत ने पूंछा बुढ़िया अब क्या परेशानी है ! बुढ़िया बोली बहुने यह प्रसाद पीने से मना कर दिया !

देवता ने पुंछा क्यौं ? बुढ़िया बोली कि बहु ने कहा कि वह अपना मूत कभी नहीं पियेगी.! भगत जोर से बोला क्या ? अपना मूत ! बुढ़िया क्या तू गऊ मूत नहीं लायी थी बुढ़िया बोली आपने ही तो बहूमूत मंगाया था ।

भगत बोला बुढ़िया तेरा सत्यानाश हो सबको अपवित्र कर दिया मैंने तो गऊमूत मंगाया था.।

अब बुढ़िया की बारी थी उसने चप्पल उतारी और भगत पर बजानी शुरू की कि कैसा देवता खेल रहा था जो तुझे पता नहीं चला कि किसका मूत है ।

मैं तो ऊंचा सुनती थी तू तो देवता था तुझे तो सब पता होना चाहिये था । वहां मौजूद दूसरे लोगौं ने भी बुढ़िया की तरफदारी की और भगत को खूब अच्छी तरह से धो दिया..।
कुछ समझ में आया???

 दिमाग की बत्ती जलाओ पाखंड दूर भगाओ।।

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