आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी - वैदिक समाज जानकारी

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Saturday, 21 December 2019

आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी

ओ३म्
-आज 105 वी जयन्ती पर-

“सामवदेभाष्यकार आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी का महान व्यक्तित्व”

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ऋषि दयानन्द की वैदिक विद्वानों की शिष्य मण्डली में आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी का प्रमुख एवं गौरवपूर्ण स्थान है।

अपने पिता की प्रेरणा से गुरुकुल कागड़ी, हरिद्वार में शिक्षा पाकर, वहीं एक उपाध्याय व प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवायें देकर तथा अध्ययन, अध्यापन, वेदों पर चिन्तन व मनन करके आपने देश व संसार को अनेक मौलिक वैदिक ग्रन्थों की सम्पत्ति प्रदान की है।

 आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी के साहित्य के अध्येता उनके साहित्य के महत्व को जानते हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमें उनके जीवनकाल में कुछ वर्षों तक उनका सान्निध्य मिलता रहा और उनके प्रायः सभी ग्रन्थों को पढ़ने का सौभाग्य भी ईश्वर की कृपा से मिला हे।

 अपने जीवन पर विचार करने पर हमें लगता है कि हमारा वर्तमान जीवन मुख्यतः ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों के अध्ययन के अतिरिक्त आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी और कुछ अन्य प्रमुख वैदिक आर्य विद्वानों की संगति व उनके ग्रन्थों के अध्ययन का ही परिणाम है।

अतः हम आर्यजगत के इन सभी विद्वानों के ऋणी एवं कृतज्ञ हैं और इसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।

आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी 105 वर्ष पूर्व 7 जुलाई, 1914 को बरेली में जन्में थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार के गंगापार के जंगलों में हुई थी।

स्वामी श्रद्धानन्द जी के आपने साक्षात् दर्शन किये थे। एक बार बचपन में स्वामी श्रद्धानन्द जी को एक पत्र भी लिखा था। उसका उत्तर उन्हें गुरुकुल के आचार्य के माध्यम से आया था

जिसमें उन्हें वैदिक साहित्य का अध्ययन करने और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की सेवा करने का सन्देश व प्रेरणा थी। आचार्य जी ने गुरुकुल से अपनी शिक्षा पूरी कर स्वामी श्रद्धानन्द जी की प्रेरणा के अनुसार अपना शेष जीवन गुरुकुल को ही समर्पित किया।

वेदों व वैदिक विषयों के वह देश में जाने माने मर्मज्ञ विद्वान थे। उनका जीवन वैदिक मूल्य व मान्यताओं का जीता-जागता उदाहरण था। वह सरलता व सादगी की साक्षात् मूर्ति थे।

सेवानिवृति के बाद उन्होंने अधिकांश समय आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर के निकट गीता आश्रम, ज्वालापुर में निवास कर व्यतीत किया।

वह अपने निवास स्थान पर आने वाले सभी व्यक्तियों से पूरी संजीदगी, सहृदयता व आदर के साथ मिलते थे। उनसे वार्ता करते थे। अपने पारिवारिक जनों व मित्रों के प्रति उनका कुछ प्रेम व स्नेह तो था परन्तु द्वेष किसी से नहीं था।

 वह आर्यसमाज विषयक नकारात्मक किसी भी प्रकार की कोई बात कभी नहीं करते थे। हमने अनेक वर्षों तक यदा-कदा उनके पास जाकर आर्यसमाज के हित से जुड़ी अनेक बातें उनसे की थी।

वह हमारी प्रत्येक बात सुनते थे और उसका संक्षिप्त उत्तर देते थे। पूर्व प्रकाशित व समय-समय पर प्रकाशित होने वाले उनके ग्रन्थों को हम उन्हीं से प्राप्त करते थे।

 वेदों के प्रति उनकी निष्ठा निराली थी। उनका जीवन वेदमय था। उनकी वेद व्याख्याओं को पढ़ कर लगता है कि जैसे उन्होंने वेदों के मर्म को आत्मसात किया हुआ है।

उनकी सरल व सुबोध वेद व्याख्यायें पढ़कर उनका रहस्य पाठक के हृदय पर अंकित हो जाता था। उनके सभी ग्रन्थ पठनीय व प्रेरणादायक होने के साथ कर्तव्य के प्रेरक हैं।

 उन्हें पढ़कर लगता है कि वेद दुर्बोध नहीं अपितु सरल व सुबोध हैं। पाठक हमारी तरह संस्कृत भले ही न जानते हों परन्तु आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी की मन्त्रों की व्याख्यायें पढ़कर उसका रहस्य व गूढ़ार्थ हृदयगंम हो जाता है।

आचार्यजी ने सामवेद का संस्कृत एवं हिन्दी में विस्तृत भाष्य किया है जिसकी सभी विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है।

इसके अतिरिक्त आपके अन्य ग्रन्थों वेदों की वर्णन शैलियां, वैदिक वीर गर्जना, वैदिक सूक्तियां, वेद मंजरी, वैदिक नारी, यज्ञ मीमांसा, वेद भाष्यकारों की वेदार्थ प्रक्रियाएं, महर्षि दयानन्द के शिक्षा, राजनीति और कला-कौशल संबंधी विचार,

 वैदिक शब्दार्थ विचारः, ऋग्वेद ज्योति, यजुर्वेद ज्योति, अथर्ववेद ज्योति, आर्ष ज्योति, वैदिक मधु वृष्टि तथा उपनिषद दीपिका आदि का अध्ययन करने पर साधारण पाठक वेद विषयक ज्ञान में उच्च स्थान पाता है।

 आचार्य जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आपके पुत्र सुप्रसिद्ध आर्य विद्वान डा. विनोदचन्द्र विद्यालंकार जी के सम्पादन में ‘श्रुति मन्थन’ नाम से एक विशालकाय ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है।

 यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं एवं इसे आर्य प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य, मैसर्स श्रीघूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ, न्यास, हिण्डोनसिटी (राजस्थान) (मोबाइल नं0 09414034072 एवं 09887452951) से प्राप्त किया जा सकता है।

आचार्य जी के इन सभी ग्रन्थों को पढ़कर वैदिक धर्म व संस्कृति को आत्मसात कर सच्चा वैदिक जीवन जिया जा सकता है।

यह भी बता दें कि आचार्य जी के अधिकांश ग्रन्थ भव्य साज सज्जा के साध दो आर्य प्रकाशकों श्री अजय आर्य, मैसर्स विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली एवं श्री प्रभाकरदेव आर्य, मैसर्स हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डोनसिटी (राजस्थान) से उपलब्ध हैं।

आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी ने गुरुकुल कांगड़ी से सन् 1976 में सेवा निवृति के बाद चण्डीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में 3 वर्षों के लिए ‘महर्षि दयानन्द वैदिक अनुसंधान पीठ’ के आचार्य व अध्यक्ष बनाये गये थे।

यहां सन् 1979 तक रहकर आपने अनेक शिष्यों को वैदिक विषयों में शोध कराया जिनमें से एक डा. विक्रम विवेकी जी भी हैं। अन्य अनेक शिष्यों ने भी आपके मार्गदर्शन में समय-समय पर शोध उपिधयां प्राप्त की हैं।

आचार्य जी समय-समय पर अनेक सम्मानों व पुरुस्कारों से भी आदृत हुए हैं। प्रमुख पुरस्कारों में आपको संस्कृत निष्ठा के लिए भारत के राष्ट्रपति जी की ओर से देश के संस्कृत के राष्ट्रीय विद्वान के रूप में सम्मानित किया गया था।

इसके अतिरिक्त सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या पुरस्कार एवं आर्यसमाज सान्ताक्रूज, मुम्बई के वेद वेदांग पुरस्कार से भी आप सम्मानित किये गये थे। अन्य अनेक संस्थाओं ने भी समय-समय पर आपको सम्मानित किया था।

आज आचार्य जी के 105वें जन्म दिवस पर हम आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी को हृदय से श्रद्धाजंलि देते हैं। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द और स्वामी श्रद्धानन्द जी की आज्ञाओं का पालन करते हुए अपना जीवन वेदमाता की आजीवन सेवा को समर्पित किया था।

उनका जीवन हमारे लिये प्रेरणादायक है। हमारा सौभाग्य था कि हमें वर्षों तक उनका सान्निध्य मिला। हम उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते।

ईश्वर करे कि आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी जैसे विद्वान आर्यसमाज रूपी माता को पुनः पुनः प्राप्त होते रहें जिससे आर्यसमाज अपने लक्ष्य की ओर तीव्र गति बढ़ता रहे। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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