वीर सिपाही- अभिनंदन का कमाल
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वीर सिपाही- अभिनंदन का कमाल |
विंग कमाण्डर अभिनन्दन ने यदि फैण्टम गिराया नहीं होता तो वह फैण्टम सकुशल भाग जाता और पाकिस्तान कहता कि उसने फैण्टम भेजा ही नहीं था ।
अतः विेंग कमाण्डर अभिनन्दन ने केवल एक फैण्टम नहीं गिराया,पाकिस्तान के सारे बचे हुए ७५ फैण्टम भी अब पार्ट पुर्जों की कमी के कारण बेकार हो जायेंगे और भविष्य में पाकिस्तान को आधुनिक शस्त्रादि मिलने में बहुत अधिक कठिनाई होगी । अब केवल चीन का गोपनीय सहारा उसके पास है ।
फैण्टम को गिराने का यह महत्व विेंग कमाण्डर अभिनन्दन जानते थे तभी तो अपने प्राणों को सङ्कट में डालकर पुराने मिग द्वारा भी फैण्टम से युद्ध का खतरा मोल लिया । वे यदि फैण्टम को बिना गिराये लौट आते तो उनसे वायुसेना कोई सवाल नहीं पूछती क्योंकि मिग−२१ द्वारा फैण्टम−१६ का मुकाबला करने के लिये उनको कोई नहीं कहता ।
यही कारण है कि दो एयर वायस मार्शल उनको रिसीव करने गये थे । विेंग कमाण्डर अभिनन्दन ने पाकिस्तानी सैन्य शक्ति की कमर ही तोड़ दी । और पाकिस्तान उनको मार भी नहीं पाया क्योंकि विेंग कमाण्डर अभिनन्दन को बचाने के लिये भारतीय सेना पूर्ण युद्ध हेतु कटिबद्ध हो गयी थी । अब खिसियाकर पाकिस्तान सीमा पर निहत्थे ग्रामीणों के खम्बे नोच रहा है । भारतीय सेना इसका भी समाधान कर रही है । राजनैतिक नेतृत्व सही हो तो सेना पूर्ण सक्षम है ॥
✍🏻विनय झा
प्रकृति के संतुलनकारी उपकरणों में से एक सहज उपलब्ध उपकरण युद्ध भी है, सहज उद्घाटित और प्रकटीकरण में सरलतम! निश्चित ही हिंसा और प्रतिहिंसा के बीज हमारे डी एन ए की पुरा गह्वरों में कहीं भीतर भी विद्यमान हैं।
संघर्ष प्रकृति के विस्तार का प्रमुख तत्व है, वह जैव विकास - योग्यतम की अतिजीविता वाले डार्विन हों, चाणक्य, व्यास या कि वाल्मीकि या फिर ट्राट्स्की! न्याय और शान्ति की पुनर्स्थापना के लिए युद्ध के विकल्प की बात हर जगह है।
प्रकृति के पंजे और चोंच रक्त तप्त हैं वह संघर्षो्ं से चेतना को सशक्त करती है तो विध्वंस से सृजन। एक पूरे मेटाबोलिज्म में कैटाबोलिज्म और एनाबोलिज्म का साम्य-संतुलन सधता रहता है।
युद्ध टालने के लिए सशक्त बुद्धिलब्धि और अच्छी नीयत वाले सुयोग्य दोनों पक्षों में आवश्यक हैं। नेकनीयती के अभाव में तो रावण जैसे महापंडित का भी वध आवश्यक है। आप अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग अहिंसा का इस्तेमाल कर सकते हैं, अल कायदा और जैश के विरूद्ध तो यह आत्मघात जैसा होगा।
भारतवंशियों में सदैव युद्ध को टालने की मंशा और क्षमता रखने वाले सुपुरूष प्रखर रहे फिर भी युद्ध एक सिद्धहस्त कुशल शिकारी की भांति अपने लक्ष्य को भेद ही देता है। आज हम पर आरोप है कि हम भारतवंशी युद्धोन्मादी हैं। मुझ पर व्यक्तिगत आक्षेप भी मेरी एक कविता को लेकर। कविराजों और कविरानियों ने फैसला दिया कि हम कवि नहीं रहे हालांकि कवि होने का हमारा कोई दावा या मंशा भी नहीं।
स्पष्ट करते चलें कि हम युद्धोन्मादी नहीं रहे कभी! हम रावण से , बैक्ट्रिया के यवनों से, अलक्षेन्द्र से, मिनाण्डर से, डिमिट्रियस प्रथम से, शकों,हूणों,कुषाणों, मोहम्मद बिन कासिम, गजनी-गोरियों,बाबर,अकबर औरंगजेबों, डच, पुर्तगाली, अंग्रेजों, चीनी पाकिस्तानियों से कभी युद्ध नहीं चाहते थे। पर हमें लड़ना पड़ा आज भी लड़ ही रहे हैं।
और कैसा लड़े सब जानते हैं। कुरूवंश के पहले के लगभग सभी राजाओं, महाराज पृथु, महाराज युधिष्ठिर, चंद्रगुप्त मौर्य, महाराज मिहिरकुल ने विराट भूभाग पर सनातन यज्ञ किए।
हम लड़ना नहीं चाहते पर जब लड़ते हैं तो मृत्यु का तिरस्कार करते हैं। हमारे वीरगति सद्गति से तो देवता तक ईर्ष्या करते आए हैं। हमारा देवता चिताभस्म का आभूषण धारण करता है तो हमारी ईश्वरी की क्रीड़ाभूमि ही श्मशान है। हम महाभारत के शान्ति पर्व में युद्ध का दर्शन देने की क्षमता वाले लोग हैं ।
धर्म्माद्धि युद्धाच्छ्रेयो$न्यत् क्षत्रियस्य न विद्यते ।
(भीष्म पर्व २६/३१ )
इस्लामिक अतिवादी आततायी हैं। छः प्रकार के आततायियों के विनाश के लिए शस्त्र-धारण की आज्ञा शास्त्र देते हैं। प्राण-भय से बुद्ध का जप करने वाले नैराश्यवादी प्रवंचक तो जीते ही मृतक समान हैं निकम्मे गृहस्थ की तरह।
राष्ट्र धर्म और राष्ट्र-रक्षा यज्ञ है। वर्तमान समय में क्षात्र धर्म का धारण ही राष्ट्र के लिए सम्यक धम्म है। रक्षण आक्रमण में लगे हमारे क्षत्रिय योद्धा धन्य हैं।धन्य हैं वह जो इस यज्ञ में प्राणों की आहुतियां दे रहे हैं देने को तत्पर हैं। हमारे मोक्ष जैसा परमपद भी उन वीरों की सद्गतियों के सम्मुख तुच्छ है।
क्षत्रियो निहत: संख्ये न शोच्य इति निश्चय: ।( वाल्मीकि रामायण - युद्धकाण्ड १०९|१८ )
अथ चेत्वमिमं धम्यं, संगा्रमं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्म कीर्ति च, हित्वा पापमवाप्स्यसि।।
स्वकर्म स्वधर्म में लगे उन क्षत्रियों के चरण रज को नमन
✍🏻
डा. मधुसूदन पाराशर उपाध्याय
* संक्षिप्त आकलन *
इतना आतंक है या दोगलापन है कि :-
1 दुनिया भर के सभी तुर्रमखां (महाशक्ति) कहलाने वाले देश आज तक "आतंकवाद" का धर्म घोषित नहीं कर सके हैं।
2 uno आतंकवाद को परिभाषित नहीं कर सका है कि आतंकवाद किसे कहते हैं।
3 सभी देश आतंकवादियों के चपेट में हैं, और उनके दिये घाव सहला रहे हैं।
4 दुनिया के सभी देश आतंकवाद समाप्त करना चाहते हैं/लड रहे हैं। समग्र रूप से युद्ध घोषित नहीं करना चाहते हैं।
5 सभी देश अपनी सैनिक क्षमता से अच्छी तरह से परिचित हैं।
6 सभी आतंकवाद से लडने के लिए एक ऐसा देश और सेना चाहते हैं जो सभी के लिए लडे।
7 ऐसे दो देश हैं दुनिया में एक चीन और दूसरा भारत।
8 चीनी किसी और के लिए युद्ध नहीं करेंगे। अपने विस्तारवादी नीतियों के लिए ही युद्ध करेगा, प्रकारांतर से वह चीन भी आतंकवादी है।
9 बहुत समय से सभी देश भारत की ओर देख रहे थे किंतु अभी तक कोई विश्वसनीय नेतृत्व नहीं था भारत में।
10 संयोग से भारत में एक विश्वसनीय नेतृत्व मिल गया है, जिस पर विश्वास करके विश्व उसके समर्थन में है, मात्र आतंकवाद की लड़ाई तक।
11 विश्व विजय की राजनीति, क्रश्चियनिटी, ईस्लाम, कम्युनिस्ट तीनों करते हैं और तीनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं। कम्युनिस्ट और इस्लाम का गंठजोड क्रश्चियनिटी के विरुद्ध है और एक दूसरे के सहयोगी हैं। कम्युनिस्टों की राजनीति है वह जानते हैं कि क्रश्चियनिटी मजबूत शत्रु है उससे कमजोर इस्लाम है। इस्लाम का इस्तेमाल कर ईसाईयत को परास्त करने पर इस्लाम को परास्त करना कठिन नहीं होगा।
हिन्दू राजनीति इसमें संतुलन बनाए हुए थी स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए किंतु हिन्दू राजनीति को बाध्य हो कर युद्ध में सम्मिलित होना पडेगा।
अब आतंकवाद की समाप्ति पर फिर चारों राजनीति अपने अपने जगह पर यथास्थिति में होंगे।
यदि इस आकलन में किसी/कोई ऐसे अनचाहे मोड़ आगये तो विश्वयुद्ध निर्णायक होगा कि कौन विश्व विजयी है।
निर्णय युद्ध के बाद सर्वसम्मति से सभी के स्विकृति से "अश्वमेध" पूर्ण होगा कि "चक्रवर्ती" कौन है।
हरिः शरणं मम 🌺
सत्यमेव जयते 🌺
✍🏻
मनमौजी दुबे
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