ऋषि दयानन्द के लघु ग्रन्थों का महत्वपूर्ण संग्रह - वैदिक समाज जानकारी

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Saturday, 21 December 2019

ऋषि दयानन्द के लघु ग्रन्थों का महत्वपूर्ण संग्रह

ओ३म्

“रामलाल कपूर ट्रस्ट, सोनीपत से प्रकाशित ऋषि दयानन्द के लघु ग्रन्थों का महत्वपूर्ण संग्रह”

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आर्यजगत के प्रमुख एवं शीर्ष विद्वान पं0 युधिष्ठिर मीमांसक जी ने आर्यसमाज की स्थापना शताब्दी वर्ष 1975 के अवसर पर ऋषि दयानन्द के सभी प्रमुख ग्रन्थों को विशेष साजसज्जा एवं

अनेक टिप्पणियों एवं महत्वपूर्ण परिशिष्टों के साथ रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़-सोनीपत की ओर से प्रकाशित किया था।

इन ग्रन्थों में लघु ग्रन्थों के संग्रह सहित सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा संस्कारविधि ग्रन्थ भी सम्मिलित थे। ‘ऋषि दयानन्द के शास्त्रार्थ और प्रवचन’ आदि कुछ अन्य ग्रन्थों का प्रकाशन भी हुआ था।

 लघुग्रन्थ संग्रह एक विशालकाय ग्रन्थ बन है। इसमें 100+768 पृष्ठ हैं। इस संग्रह में ऋषि के निम्न ग्रंथों को समाविष्ट किया गया हैः

1-  स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म-चरित्र
2-  आर्याभिविनय
3-  ऋग्वेदभाष्य (प्रथम नमूने का अंक) 
4-  भ्रान्ति-निवारण
5-  भ्रमोच्छेदन
6-  पंचमहायज्ञविधि
7-  वेदान्ति-ध्वान्त-निवारण
8-  वेदविरुद्धमत-खण्डनम्
9-  शिक्षापत्री-ध्वान्त-निवारणम्
10- भागवत-खण्डनम्
11- व्यवहारभानु
12- गोकरुणानिधि
13- आर्योद्देश्यरत्नमाला
14- चतुर्वेद-विषय-सूची

ग्रन्थ के आरम्भ में इस संस्करण की निम्न विशेषतायें भी सूचित गई हैं:-

1-  इस संग्रह में ऋषि दयानन्द के 14 लघुग्रन्थों का संकलन है।
2-  यथासम्भव प्रथम-द्वितीय संस्करणों से मिलान करके मूलपाठ दिया गया है।
3-  उद्धृत वचनों का ग्रन्थकार-अभिमत शुद्ध पाठ वा उनके मूल स्थान का निर्देश।
4-  मूल ग्रन्थों के पाठों पर सहस्राधिक टिप्पणियां।
5-  अनेक ग्रन्थों से सम्बद्ध ग्रन्थकारीय लेखों का उस-उस ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्टरूप से संकलन।
6-  उद्धरण की सुविधा के लिये प्रति पृष्ठ पंक्ति-संख्या का निर्देश।
7-  लम्बे-लम्बे सन्दर्भों का छोटे-छोटे सन्दर्भों में विभाजन।
8-  विस्तृत सम्पादकीय।
9-  ग्रन्थों का ऐतिहासिक विवरण।
10- अन्त में 10 अत्युपयोगी परिशिष्ट (=सूचियां)
11- सुन्दर शुद्ध मुद्रण, बढ़िया कागज, पक्की सुन्दर जिल्द।
12- लागत सजिल्द मात्र मूल्य 60-00 (महंगाई के कारण)

ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित यह ग्रन्थ का पहला संस्करण था और इसकी 1000 प्रतियां प्रकाशित की गईं थीं। इस ग्रन्थ के सम्पादक पं0 युधिष्ठिर मीमांसक जी थे और मुद्रक श्री सुरेन्द्र कुमार कपूर, रामलाल कपूर ट्रस्ट प्रेस, बहालगढ-सोनीपत-हरयाणा थे।

पुस्तक का प्रकाशन रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़-सोनीपत द्वारा किया गया था। पुस्तक के मुख पृष्ठ पर पुस्तक का नाम ‘‘दयानन्दीय-लघुग्रन्थ-संग्रहः” दिया गया है।

इसके नीचे जो शब्द प्रकाशित किये हैं वह हैं ‘‘विविधटिप्पणीभिरलंकृतानाम्, अनेकविधैः परिशिष्टैः सुशोभितानाम्, चतुर्दश-लघुग्रन्थानाम्”। इन पंक्तियों के नीचे लिखा है ‘‘आर्यसमाज-शताब्दी-संस्करणम्”।

इस ग्रन्थ की मुख्य विशेषताओं में पृष्ठ 6 से 24 तक का पं0 युधिष्ठिर मीमांसक जी का लिखा हुआ सम्पादकीय है। इसके बाद पृष्ठ 25 से 90 तक मीमांसक जी ने इन ग्रन्थों का विस्तृत ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया है।

ग्रन्थ में दिये गये सम्पादकीय एवं ऐतिहासिक विवरण दोनों ही अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं एवं पठनीय है। इसके बाद सभी चौदह ग्रन्थों की विस्तृत विषय सूची एवं परिशिष्टों का विवरण दिया गया है जिससे पाठकों को सुविधा एवं बहुत लाभ होता है। ग्रन्थ के अन्त में 9 परिशिष्ट दिये गये हैं जो कि अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।

इस संस्करण को प्रकाशित हुए 44 वर्ष हो चुके हैं। हमारा अनुमान है कि अब यह संस्करण बिक्री के लिये उपलब्ध नहीं है। इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ का पुनः प्रकाशन अवश्य होना चाहिये। ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिये दानी बन्धुओं को भी आगे आना चाहिये।

 हम अनुभव करते हैं कि आने वाले समय में पं0 मीमांसक जी के लिखित व सम्पादित ग्रन्थ पाठकों के लिए अलभ्य हो सकते हैं। नई पीढ़ी को इस पर ध्यान देना चाहिये और पंडित जी के सभी ग्रन्थ सुलभ होते रहें, इस समस्या का समाधान करना चाहिये।

 हमें इस बात की प्रसन्नता एवं सन्तोष है कि हमारे पास यह अमूल्य ग्रन्थ व निधि विद्यमान है। हम यह भी बता दें कि इससे पूर्व व बाद में किसी प्रकाशक से यह सभी ग्रन्थ एक साथ नहीं छपे।

 इस ग्रन्थ के प्रकाशन से पूर्व आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली ने भी ऋषि के चौदह ग्रन्थों का एक संग्रह प्रकाशित किया था। इसके समाप्त होने पर एक नया संस्करण भी प्रकाशित हुआ था।

हमारा अनुमान है कि आर्ष साहित्य प्रख्चार ट्रस्ट के संस्करण में ऋषि का आत्म चरित, भागवत-खण्डनम्, चतुर्वेद विषय सूची एवं आर्याभिविनय ग्रन्थ नहीं थे।

 श्री घूडमल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी से भी दयानन्द लघु-ग्रन्थ संग्रह का एक भव्य संस्करण सन् 2008 में प्रकाशित हुआ है परन्तु

इस ग्रन्थ में ऋषि के केवल पांच ग्रन्थों पंचमहायज्ञविधि, आर्योद्देश्यरत्नमाला, गोकरुणानिधिः, व्यवहारभानु तथा आर्याभिविनय को ही सम्मिलित किया गया है।

हमें लगा कि इस ग्रन्थ की जानकारी पाठक महानुभावों को दी जानी उचित है जिसका परिणाम इस लेख की उपर्युक्त पंक्तियां हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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