वैदिक भजन
विश्वपति जगदीश तुमतेरा ही ओम् नाम है -२
मस्तक झुका के प्रेम से
ईश्वर तुम्हें प्रणाम है
विश्वपति जगदीश...
सृष्टि बना के पालना
दाता है तेरे हाथ में -२
करना प्रलय भी अन्त में
तेरा ही नाथ काम है
विश्वपति जगदीश...
आता नजर नहीं मगर
कण कण में तू समा रहा -२
जग में जहां पे तू न हो
ऐसा न कोई धाम है
विश्वपति जगदीश...
ऋतुएँ बदल के आ रहीँ
नदीयाँ सिन्धु में जा रहीँ -२
शाम के बाद है सुबह
सुबह के बाद शाम है
विश्वपति जगदीश...
सूरज समय पे ढल रहा
वायु नियम से चल रहा -२
झुकता है सर ये देखकर
तेरा जो इन्तज़ाम है
विश्वपति जगदीश...
होता है न्याय ही सदा
ईश्वर तेरे दरबार में -२
चलती नहीँ सिफ़ारिशेँ
चढ़ता न कोई दाम है
विश्वपति जगदीश...
तेरे पदार्थ हैं प्रभु
पथिक सभी के वासते
सब के लिए हैं वेद भी
जिनमें तेरा पैगाम है
विश्वपति जगदीश तुम
तेरा ही ओम् नाम है
मस्तक झुका के प्रेम से
ईश्वर तुम्हें प्रणाम है
स्वर एवं रचना - सत्यपाल पथिक (वैदिक भजन उपदेशक)
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