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सत्ता (कुर्सी) प्राप्त अधिकारियों के लक्षण |
सत्ता (कुर्सी) प्राप्त अधिकारियों के लक्षण
क्रोध अधिक करना
कुर्सी का मद अधिकारियों का बहुत पतन करता है । कुर्सी ( सत्ता ) सबसे पहले क्रोध को करती है । क्रोध के कुछ उचित कारण भी होते हैं , परन्तु सत्ता कारण भी क्रोध की मात्रा बहुत बढ़ जाती है ।वाणी में असंयम
अधिकारियों के में कटुता प्रायः व्याप्त रहती है । अधिकारी वाणी के संयम को प्रायः खो देते हैं । अधिक बोलना , सोच - समझकर न बोलना , प्रेम न बोलकर कटतापूर्वक बोलना , अधीनस्थ कर्मचारियों की पीठ पर निन्दा ,आलोचना और उपहास करना , उनके समक्ष दिल दुखानेवाली बातें कहना , अपनी कार्य - सिद्धि के लिए झूठे वचन देना , झूठ बोलना ।
एक व्यक्ति द्वारा की गई आलोचना को दूसरे को बताकर उन्हें लड़ाना , गर्वोक्तियाँ कहना , आत्म - प्रशंसा करते रहना - आदि वाचिक दुर्गुण प्रायः अधिकारियों में आ जाते हैं ।
मानसिक पतन
मानसिक पतन का तो कोई ठिकाना ही नहीं । अधिकारियों में अपने से छोटों और अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति प्रायः प्रेम का अभाव होता है और अभिमान को मात्रा बढ़ जाती है । अधिकारी चाटुकारिताप्रिय हो जाते हैं ।ये आत्म - सम्मानी और स्पष्टवादी व्यक्तियों के घोर शत्रु हो जाते हैं । यदि कोई आत्मसम्मानी व्यक्ति इनके आगे अड़ जाए तो उसे पशु बल और अधिकार - बल से कुचलने का प्रयत्न करेंगे । अधीन कर्मचारी से यदि कोई त्रुटि हो जाए तो क्षमा - याचना कराएंगे , किन्तु यदि अपने से त्रुटि हो जाए तो उससे क्षमा याचना तो कहीं रही , अधीनस्थ कर्म चारियों के सम्मुख खेद भी प्रकट नहीं करेंगे और कर्मचारी का हृदय सुलगता रहेगा ।
छलकपटता
अधिकारियों के आचरण में वक्रता आ जाती है , सरलता नहीं रहती । छल - कपट , धोखेबाजी और मक्कारी उनके आचरण में आ जाती है वे बहुत तीव्र रुचि और अरुचि के व्यक्ति बन जाते हैं । जिसपर रीझ गए उसे सिर का ताज बना लिया और जिससे रुष्ट हो गए , बस उसे चींटी की भांति मसलने पर उतारू हो गए ।बदले की भावना
ये अधिकारी प्रतिकारी भी हो जाते हैं । बदला लेने की भावना उनमें प्रबल हो जाती है । जिसपर रुष्ट हो जाएंगे , उसके प्रति कमीनापन भी दिखाएंगे । ऐसी चेष्टाएँ दिखाएंगे कि जिनसे इनका कमीनापन प्रकट हो और कर्मचारी के मन में आग सुलगती रहे । कई अधिकारी अपने कर्मचारी के प्रति ( जिससे वे रुष्ट हों ) कमीनी चेष्टाएँ तो नहीं दिखाते , परन्तु रोष को मन में रखकर उस कर्मचारी की अवहेलना करने लगते हैं । उसे कोई काम नहीं बताते और उसे उपेक्षित कर देते हैं । आध्यात्मिकता की दृष्टि से यह भी एक कमी है ।कर्मचारी को बुलाकर उसके आगे अपना रोष प्रकट करने से अधिकारी मानसिक दुर्भावनाओं से बच सकते हैं । कई बार अधिकारी कर्म चारियों को आपस में लड़ा भी देते हैं । अधिकारी जिससे रुष्ट हो जाएँ उसके विरुद्ध झूठा प्रचार ( कर्मचारी की छवि बिगाड़ने और अपने पक्ष को सत्य सिद्ध करने के लिए ) आरम्भ कर देते हैं । वे अनचित साधनों से भी अपने लक्ष्य को सिद्ध करना चाहते हैं ।
स्वार्थ सिद्धि
वे पक्के स्वार्थी होते हैं । जब कोई स्वार्थ पूरा करना हो तो सम्बन्धित व्यक्ति के प्रति मधुर व्यवहार प्रदशित करेंगे । जब काम निकल जाए तो फिर उसकी कोई परवाह नहीं । कई अधिकारी तो यहाँ तक स्वार्थी होते हैं कि वे जिस कर्मचारी से रुष्ट हों उसके साथ कोई नेको नहीं करेंगे , परन्तु यदि उससे कोई काम हो तो उसके साथ बहुत मीठे हो जाएंगे ।यदि कोई व्यक्ति अधिकारी के आचरण से रुष्ट हो तो सीधे शब्दों में कभी भी उसको नहीं मनाएंगे , परन्तु उससे ही यदि कोई स्वार्थ - सिद्धि होती हो तो फिर बहुत मीठे हो जाएंगे । कई बार अपनी स्वार्थ - सिद्धि के लिए अपने कर्मचारी की स्थिति भी बिगाड़ देंगे । यदि किसी का उपकार करेंगे तो उससे आशाएँ रखेंगे ।
यदि आशाएँ पूरी न हुईं तो उसके विरुद्ध घोर निन्दापूर्ण एवं अपमानजनक प्रचार करेंगे । कई धन की हेरा - फेरी भी करते हैं । उपलब्ध साधनों का दुरुपयोग भी इनकी प्रवृत्ति बन जाती है ।
अधिकारियों के प्रायः दो चेहरे होते हैं - एक दिखाने का और दूसरा छिपाने का । इनकी मूख - मृद्रा व्यक्ति के समक्ष कुछ और होती है और व्यक्ति के पीछे कुछ और । ये व्यक्ति के सामने कुछ बात करेंगे और पीछे कुछ । यदि राज्य की सत्ता इनके हाथ में आ जाए तो कई व्यक्तियों को ही मरवा डालेंगे । हाय ! कुर्सी ( सत्ता ) के लिए इतना नैतिक पतन !
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