ओ३म्
पं0 चमूपति जी (जन्म 15-2-1893 को बहावलपुर-पाकिस्तान में तथा मृत्यु 15 जून सन् 1937 को लाहौर में) का आर्यसमाज के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है।
आपका जीवन मात्र 44 वर्ष का रहा। इस अल्पावधि ने आपने आर्यसमाज के इतिहास में अनेक नये अध्याय जोड़े। आप उच्च कोटि के संस्कृत, हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी आदि भाषाओं के विद्वान थे।
आपकी रचना ‘‘सोम सरोवर” अत्यन्त प्रसिद्ध है। हमने एक बार इनके विषय में महाशय कृष्ण जी के पुत्र आर्यनेता पं0 वीरेन्द्र जी के विचार पढ़े थे जिसमें उन्होंने कहा था कि सोम-सरोवर पं0 चमूपति जी की अत्यन्त उच्च कोटि की रचना है।
यदि पं0 जी आर्यसमाजी न होते तो उनकी इस रचना पर नोबेल पुरस्कार मिल सकता था। पं0 राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने पं0 चमूपति जी की ‘‘कविर्मनीषी पं0 चमूपति” नाम से विस्तृत जीवनी लिखी है।
इस संक्षिप्त लेख में हम पं. चमूपति जी के जीवन की एक ओज एवं तेज से युक्त घटना का वर्णन कर रहे हैं।
पं0 जी के जीवनकाल में एकबार मुस्लिम रियासत बहावलपुर के एक ग्राम में एक मौलाना ने एक सभा में भाषण करते हुए घोषणा की थी कि कल 10.00 बजे वहां की मस्जिद में दलित हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर मुसलमान बनाया जायेगा।
सब मुसलमानों का कर्तव्य है कि वह उस धर्मान्तरण के कार्यक्रम में अवश्य पहुंचे। मौलाना की सभा में एक हिन्दू युवक भी उपस्थित था।
मौलाना ने जब यह शब्द कहे तो सभा में वह युवक खड़ा हुआ और उसने अपनी बात कहने के लिए पांच मिनट का समय मांगा।
अनुमति मिलने पर उसने कहा ‘‘आज इस भाषण को सुनकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि कल दस बजे कुछ दलितों को मुसलमान बनाया जायेगा।
मैं सब उपस्थित बन्धुओं विशेष रूप से दलित भाइयों से विनती करता हूं कि वे मत परिवर्तन करने की बजाय कल ठीक 10.00 बजे मेरे विचारों को सुनें।
यदि मेरे विचारों को सुनने से उनकी सन्तुष्टि न हो तो वह सहर्ष इस्लाम स्वीकार कर लेवें।’’ पाठक यह जान लें कि यह घोषणा करने वाला युवक ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज का दीवाना पं0 चमूपति था जो उन दिनों चम्पतराय के नाम से जाना जाता था।
अगले दिन उस ग्राम में पं0 जी का ‘सार्वभौमिक धर्म’ विषय पर विद्वतापूर्ण व्याख्यान हुआ। पंडित जी ने सारगर्भित भाषण दिया और बाइबिल, कुरान तथा गुरु-ग्रन्थ साहेब के प्रमाणों से सिद्ध किया कि केवल वेद ही मनुष्यों का सार्वभौमिक धर्म है।
पंडित जी ने दलित बन्धुओं को बताया कि विश्व के दार्शनिक विचारकों का भी यही मत है कि विश्व में यदि कोई मानव धर्म हो सकता है तो वह वैदिक धर्म ही है।
पंडित जी ने अपनी ज्ञानप्रसूता माधुर्ययुक्त वाणी में दलितों को कहा कि उनका हित इसी में है कि वह वैदिक धर्म को ही ग्रहण व धारण किये रखे।
पंडित जी की सभा में मुसलमान भी उपस्थित थे। वह पंडित जी के युक्तियुक्त भाषण को सुनकर दंग रह गये। किसी में यह सामर्थ्य नहीं था कि वह पंडित जी की विद्वता, तर्क एवं प्रमाणयुक्त बातों का युक्तिपूर्वक प्रतिवाद कर सकें।
पंडित जी के भाषण का दलित हिन्दुओं पर ऐसा प्रभाव हुआ कि कोई दलित बन्धु धर्म से च्युत नहीं हुआ। पंडित जी के वैदिक धर्म की रक्षा के इस कृत्य से कुछ मतान्ध मुसलमान उनके शत्रु बन गये।
यशस्वी आर्य विद्वान प्रा0 राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने लिखा है कि यह घटना भी पं0 चमूपति जी के मुसलिम रियासत बहावलपुर से निष्कासन का एक कारण बनी।
जिज्ञासु जी आगे लिखते हैं कि पंडित चमूपति जी के इस कृत्य में धर्म रक्षा एवं धर्म के लिये बलिदान की जो भावना है, उसका शायद ही कोई धर्मबन्धु मूल्यांकन कर सके?
प्राध्यापक जिज्ञासु जी इस घटना को पंडित चमूपति जी की वाणी, विद्वता एवं शौर्य का एक चमत्कार बताते हैं और वस्तुतः यह है भी।
पंडित चमूपति जी ऋषिभक्त एवं आर्यसमाज के विद्वान होने से हम सब आर्यों के पूर्वज हैं। हमें उनके इस शौर्यपूर्ण कार्य से प्रेरणा लेनी है और धर्मरक्षा के लिये स्वयं को समर्पित करना है। यही इस घटना का रहस्य प्रतीत होता है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
“ऋषिभक्त विद्वान पंडित चमूपति जी के जीवन की एक प्रेरणादायक घटना”
===========पं0 चमूपति जी (जन्म 15-2-1893 को बहावलपुर-पाकिस्तान में तथा मृत्यु 15 जून सन् 1937 को लाहौर में) का आर्यसमाज के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है।
आपका जीवन मात्र 44 वर्ष का रहा। इस अल्पावधि ने आपने आर्यसमाज के इतिहास में अनेक नये अध्याय जोड़े। आप उच्च कोटि के संस्कृत, हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी आदि भाषाओं के विद्वान थे।
आपकी रचना ‘‘सोम सरोवर” अत्यन्त प्रसिद्ध है। हमने एक बार इनके विषय में महाशय कृष्ण जी के पुत्र आर्यनेता पं0 वीरेन्द्र जी के विचार पढ़े थे जिसमें उन्होंने कहा था कि सोम-सरोवर पं0 चमूपति जी की अत्यन्त उच्च कोटि की रचना है।
यदि पं0 जी आर्यसमाजी न होते तो उनकी इस रचना पर नोबेल पुरस्कार मिल सकता था। पं0 राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने पं0 चमूपति जी की ‘‘कविर्मनीषी पं0 चमूपति” नाम से विस्तृत जीवनी लिखी है।
इस संक्षिप्त लेख में हम पं. चमूपति जी के जीवन की एक ओज एवं तेज से युक्त घटना का वर्णन कर रहे हैं।
पं0 जी के जीवनकाल में एकबार मुस्लिम रियासत बहावलपुर के एक ग्राम में एक मौलाना ने एक सभा में भाषण करते हुए घोषणा की थी कि कल 10.00 बजे वहां की मस्जिद में दलित हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर मुसलमान बनाया जायेगा।
सब मुसलमानों का कर्तव्य है कि वह उस धर्मान्तरण के कार्यक्रम में अवश्य पहुंचे। मौलाना की सभा में एक हिन्दू युवक भी उपस्थित था।
मौलाना ने जब यह शब्द कहे तो सभा में वह युवक खड़ा हुआ और उसने अपनी बात कहने के लिए पांच मिनट का समय मांगा।
अनुमति मिलने पर उसने कहा ‘‘आज इस भाषण को सुनकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि कल दस बजे कुछ दलितों को मुसलमान बनाया जायेगा।
मैं सब उपस्थित बन्धुओं विशेष रूप से दलित भाइयों से विनती करता हूं कि वे मत परिवर्तन करने की बजाय कल ठीक 10.00 बजे मेरे विचारों को सुनें।
यदि मेरे विचारों को सुनने से उनकी सन्तुष्टि न हो तो वह सहर्ष इस्लाम स्वीकार कर लेवें।’’ पाठक यह जान लें कि यह घोषणा करने वाला युवक ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज का दीवाना पं0 चमूपति था जो उन दिनों चम्पतराय के नाम से जाना जाता था।
अगले दिन उस ग्राम में पं0 जी का ‘सार्वभौमिक धर्म’ विषय पर विद्वतापूर्ण व्याख्यान हुआ। पंडित जी ने सारगर्भित भाषण दिया और बाइबिल, कुरान तथा गुरु-ग्रन्थ साहेब के प्रमाणों से सिद्ध किया कि केवल वेद ही मनुष्यों का सार्वभौमिक धर्म है।
पंडित जी ने दलित बन्धुओं को बताया कि विश्व के दार्शनिक विचारकों का भी यही मत है कि विश्व में यदि कोई मानव धर्म हो सकता है तो वह वैदिक धर्म ही है।
पंडित जी ने अपनी ज्ञानप्रसूता माधुर्ययुक्त वाणी में दलितों को कहा कि उनका हित इसी में है कि वह वैदिक धर्म को ही ग्रहण व धारण किये रखे।
पंडित जी की सभा में मुसलमान भी उपस्थित थे। वह पंडित जी के युक्तियुक्त भाषण को सुनकर दंग रह गये। किसी में यह सामर्थ्य नहीं था कि वह पंडित जी की विद्वता, तर्क एवं प्रमाणयुक्त बातों का युक्तिपूर्वक प्रतिवाद कर सकें।
पंडित जी के भाषण का दलित हिन्दुओं पर ऐसा प्रभाव हुआ कि कोई दलित बन्धु धर्म से च्युत नहीं हुआ। पंडित जी के वैदिक धर्म की रक्षा के इस कृत्य से कुछ मतान्ध मुसलमान उनके शत्रु बन गये।
यशस्वी आर्य विद्वान प्रा0 राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने लिखा है कि यह घटना भी पं0 चमूपति जी के मुसलिम रियासत बहावलपुर से निष्कासन का एक कारण बनी।
जिज्ञासु जी आगे लिखते हैं कि पंडित चमूपति जी के इस कृत्य में धर्म रक्षा एवं धर्म के लिये बलिदान की जो भावना है, उसका शायद ही कोई धर्मबन्धु मूल्यांकन कर सके?
प्राध्यापक जिज्ञासु जी इस घटना को पंडित चमूपति जी की वाणी, विद्वता एवं शौर्य का एक चमत्कार बताते हैं और वस्तुतः यह है भी।
पंडित चमूपति जी ऋषिभक्त एवं आर्यसमाज के विद्वान होने से हम सब आर्यों के पूर्वज हैं। हमें उनके इस शौर्यपूर्ण कार्य से प्रेरणा लेनी है और धर्मरक्षा के लिये स्वयं को समर्पित करना है। यही इस घटना का रहस्य प्रतीत होता है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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