वैदिक भजन
सत्संग वाली नगरी चल रे मना २
पी सत ज्ञान का जल रे मना २सतसंग वाली नगरी...२
इस नगरी में ज्ञान की गंगा २
जो भी नहाए हो जाए चंगा
मल मल हो निर्मल रे मना
सतसंग वाली नगरी...२
सतसंग के हैं अजब नजारे २
बहुत सुहाने बहुत ही प्यारे
पा सुख शांति का फल रे मना
सतसंग वाली नगरी...२
सतसंग का ये असर हुआ है २
बाहर सब कुछ बदल गया है
तू अंदर से बदल रे मना
सतसंग वाली नगरी...२
सतसंग का वो फल है निराला २
मन मन्दिर में होवे उजाला
कर जीवन को सफल रे मना
सतसंग वाली नगरी...२
किसमत का चमका है सितारा २
उदय हुआ है भाग्य तुम्हारा
अवसर जाए ना निकल रे मना
सतसंग वाली नगरी...२
चल के *पथिक* शुभ कर्म कमा ले २
इस अवसर से लाभ उठा ले
देर न कर इक पल रे मना
सतसंग वाली नगरी...२
पी सत ज्ञान का जल रे मना २
सतसंग वाली नगरी...२
स्वर एवं रचना - *सत्यपाल पथिक* (वैदिक भजनोपदेशक)
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