यज्ञ और पर्यावरण
![]() |
यज्ञ और पर्यावरण |
।।ओ३म्।।
------------------
वायु शुद्ध करने में भारतीय वैदिक तकनीक
पूरी तरह सफल ( आज का विज्ञान फेल)
पढ़कर तो देखें तब चिन्तन करें, सोचें और विचारें
यही वैज्ञानिकता है।
------------------------------------
*प्रदूषण की विकरालता के चलते दिल्ली एनसीआर में स्वास्थ्य आपातकाल* घोषित कर दिया गया है। बच्चों के *स्कूल बंद कर दिये गये हैं*।
सरकार लाखों खर्च कर पचास हजार मास्क खरीद रही है और ये स्थिति दिल्ली या भारत की ही नहीं लगभग *पूरा विश्व प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है।*
सरकार लाखों खर्च कर पचास हजार मास्क खरीद रही है और ये स्थिति दिल्ली या भारत की ही नहीं लगभग *पूरा विश्व प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है।*
इससे मुक्ति पाने का सबसे सरल और तुरत उपाय है यज्ञ का करना।
पूरे देश में बड़े पैमाने पर यदि यज्ञ करवाये जायें तो चंद दिनों में ही इस समस्या का समाधान संभव है।
यज्ञ आत्मिक आनन्द और पारलौकिक सुख तो देता ही है इसी के साथ *यज्ञ पर्यावरण को शुद्ध कर हमें आरोग्य भी प्रदान करता है।
कुछ लोगों का मानना है कि इतनी महंँगाई में घृत आदि महंँगे पदार्थों को खाने की अपेक्षा अग्नि में जलाकर नष्ट कर देना उचित नहीं है बल्कि जलाने की अपेक्षा खाया जाए तो अधिक लाभप्रद होगा।
महर्षि दयानन्द इस शंका का समाधान करते हुए लिखते हैं *"जो तुम पदार्थ विद्या जानते तो कभी ऐसी बात ना कहते"।
क्योंकि किसी द्रव्य (पदार्थ) का अभाव नहीं होता।
विज्ञान से भी यही तथ्य सिद्ध होता है।----
"द्रव्य की अविनाशिता के नियम" के अनुसार भी पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता।
पदार्थों को अग्नि में जलाने या पदार्थों पर किसी रासायनिक क्रिया करने से पदार्थों के अपने स्वरूप में ही परिवर्तन होता है।
परिवर्तनों होने पर पदार्थ की बहुत कम मात्रा नवीन पदार्थ में बदल जाती है लेकिन निस्तापन व भर्जन आदि क्रियाओं द्वारा पदार्थ का अधिकतम भाग गैसीय रूप में बदल जाता है।
परिवर्तनों होने पर पदार्थ की बहुत कम मात्रा नवीन पदार्थ में बदल जाती है लेकिन निस्तापन व भर्जन आदि क्रियाओं द्वारा पदार्थ का अधिकतम भाग गैसीय रूप में बदल जाता है।
*वातावरण में उपस्थित धूल मिट्टी के कण कोलॉइडी आकार में कोहरे {फॉग (Fog)} के रूप में वातावरण में प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।*
इस *फॉग (Fog)* रूपी वातावरण के *प्रदूषण* को दूर करने के *यज्ञ विज्ञान* को निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है। ---
यदि बहुत धूलभरे वातावरण में किसी ऐसे व्यक्ति को भेजा जाए जिसकी कमीज (शर्ट) की एक बाँह पर गाय का घी लगा हो तथा दूसरी बाँह पर घी नहीं लगा हो और वह व्यक्ति एक-दो घण्टे रुककर वहाँ से लौटकर अपनी शर्ट उतार कर झाड़े तो शर्ट की जिस बाँह पर घी लगा था उससे धूल मिट्टी झड़ेगी नहीं।
इससे पता चला कि घी में धूल मिट्टी के कोलॉइडी कणों को पकड़ने (खींचने) की बड़ी ताकत (शक्ति) है।
प्रात: कालीन बेला (ब्रह्ममुहूर्त) में जब वातावरण का ताप न्यूनतम होता है तब ओस पड़ती है तो उस समय
धूल मिट्टी लगे गैसीय घी के कणों पर वायु की जलवाष्प भी जम जाती है और वह भारी होकर ओस के साथ वातावरण से भूमि पर आ जाते हैं और वातावरण शुद्ध व साफ हो जाता है।
धूल मिट्टी लगे गैसीय घी के कणों पर वायु की जलवाष्प भी जम जाती है और वह भारी होकर ओस के साथ वातावरण से भूमि पर आ जाते हैं और वातावरण शुद्ध व साफ हो जाता है।
अग्निहोत्र क्यों किया जाता है? |
---|
वेदों के बारे में |
यज्ञ में जलवाष्प को संघनित (Condense) करने वाले आर्द्रताग्राही (Moisturizer) पदार्थ हवन सामग्री के साथ प्रयोग करके वृष्टि यज्ञ किया जाता है।
यज्ञ में विशिष्ट औषधियों का प्रयोग करके पुत्रेष्टि यज्ञ भी किया जाता था।
रामायण काल में श्रंगि ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था और राम,लक्ष्मण,भरत एवं शत्रुध्न जैसे महान् पुत्र उत्पन्न हुए।
इसी प्रकार गो संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गोमेघ यज्ञ राष्ट्र की सुख-समृद्धि एवं संगठित रखने के लिए अश्वमेघ यज्ञ किए जाते थे।
यज्ञ में विभिन्न प्रकार की अग्नियों को उत्पन्न करके यज्ञ से अलग-अलग प्रकार के लाभों को प्राप्त करते थे। जैसे सूखे मेवे युक्त सामग्री की आहुति देने से गैस, BP, ह्रदय, शुगर आदि रोगों में लाभ होता है।
इसी प्रकार अलग-अलग वक्षों जैसे आम, पीपल, गूलर,बरगद ,पलास के पौधों की समिधा (आहुति की लकड़ी) का प्रयोग करके अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं। अंगारों की अग्नि या ज्वाला अग्नि का भी अलग-अलग लाभ मिलता है।
इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि हर पदार्थ की ज्वाला का रंग भी भिन्न-भिन्न होता है अर्थात् उनके गुण भी भिन्न-भिन्न ही होंगे और जब गुण भिन्न-भिन्न होंगे तो उनके लाभ भी भिन्न-भिन्न प्राप्त होते हैं।
*प्रायोगिक तौर पर भी देखने में आता है कि चूल्हे की आग पर सेकी गईं रोटियांँ गैस पर सिकी रोटियों की अपेक्षा पचने में अधिक आसान होती हैं।*
रसायन विज्ञान में पदार्थों का जब ज्वाला परीक्षण करते हैं तो उसमें पदार्थ को ज्वाला में रखकर गर्म किया जाता है तो जो ज्वाला का रंग बनता है वह विशेष होता है और उसी से उस पदार्थ की पहचान कर ली जाती है।
यह ज्वाला के भिन्न-भिन्न रंग पदार्थों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर निर्भर होते हैं। इन्हीं रंगों से पदार्थ की पहचान कर ली जाती है।
इस प्रकार वातावरण को शुद्ध और पवित्र करने की यज्ञ के अलावा और दूसरी कोई भी तकनीक (Technique) विधि नहीं है जो इतने कम खर्च में इतना अत्यंत व्यापक असर कर सके। यज्ञ तो कहीं भी कोई गरीब भी कर सकता है।
महत्वपूर्ण बात तो यह है कि *यज्ञ करने के लिए तो किसी भी तरह के यंत्र या मशीन की भी जरूरत ही नहीं होती है* और कहीं भी कभी भी किया जा सकता है।
प्रत्येक व्यक्ति वातावरण में पसीना, मलमूत्र एवं स्वास में CO२ विसर्जन कर वातावरण को गंदा तो नित्य करता है
परन्तु जो व्यक्ति नित्य इस प्रर्यावरण को गंदा या प्रदूषित कर रहा है कि उसी का दायित्व है कि वह नित्य इसे शुद्ध भी करे।
प्राचीन समय में प्रत्येक व्यक्ति दैनिक यज्ञ करके वातावरण के प्रदूषण को नित्य दूर करता था परन्तु आज का व्यक्ति संस्कारहीन शिक्षा के कारण इस कर्त्तव्य से ही अनभिज्ञ है। पता नहीं यह जाग्रति कब आयेगी ?
परन्तु वह अपने इस दायित्व को निभाता क्यों नहीं है? वह अपने दायित्व को भूला हुआ है।
मीडिया, नेता , खिलाड़ी या अभिनेता अथवा वैज्ञानिक* सभी अपने इस वातावरण शुद्धिकरण के दायित्व को निभाने के लिए यज्ञ के प्रति दुराग्रहपूर्ण भावना रखे हुए हैं और इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं।
वरना मीडिया तो इस सर्वहितकारी यज्ञ का प्रचार-प्रसार का अभियान चलाकर जन-जन को इतना जागरूक व प्रेरित कर सकता है कि फिर शायद अन्य की जरूरत ही न पड़े।
*यदि व्यक्ति यज्ञ के द्वारा इसको शुद्ध भी किया करें तो प्रदूषण की समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी।
आज यज्ञ के इस विज्ञान के प्रचार-प्रसार की महती आवश्यकता है।
शास्त्रों में यज्ञ को इसी वैज्ञानिकता के कारण सर्वोत्तम कर्म माना गया है।
पदार्थ में उपस्थित गुण सूक्ष्म रूप धारण कर अधिक शक्तिशाली होकर और अधिक लाभदायक हो जाते हैं।
विज्ञान के अनुसार *रासायनिक प्रक्रिया स्थूल पदार्थ की अपेक्षा सूक्ष्म कणों वाले पदार्थों में अधिक तेजी से होती है।*
लकड़ी या कोयला धीरे-धीरे जलता है पेट्रोल-डीजल-केरोसिन कुछ तेजी से जलते हैं और कुकिंग गैस या कोई ईंधन गैस अत्यंत तीव्र गति से जलती है।
रसायनिक क्रिया में पदार्थ के अणु भाग लेते हैं जो अत्यंत सूक्ष्म हैं ।अतः पदार्थ जितना अधिक सूक्ष्म होगा वह क्रिया में उतनी ही जल्दी भाग लेगा एवं क्रिया तेज होगी। रासायनिक प्रक्रिया ठोस और द्रव की अपेक्षा गैस में सबसे अधिक तेजी से होती है।
यज्ञाग्नि मेंआहूत किए गए द्रव्य की शक्ति और उसका व्यापार क्षेत्र उसके सुक्ष्म होने से अनेक गुणा बढ़ जाता है।
स्थूल वनस्पति और औषधियों की यज्ञाग्नि में हवि देने से उसके औषधीय गुण कई गुना बढ़ जाते हैं। यज्ञ में जो हव्यद्रव्य आहुत किए जाते हैं वे अत्यंत सूक्ष्म होकर गैस रुप में आ जाते हैं।हल्के होकर शीघ्र ही संपूर्ण वायु में फैल जाते हैं।
यह वैज्ञानिक सत्य है स्थूल पदार्थ से उसके चूर्ण में,चूर्ण से तरल में और तरल से वायु या गैस रूप में अधिक शक्ति होती है।
*मिर्च को खाने और अग्नि में डालकर उसको सूँघने से यह अंतर स्पष्ट हो जाता है।* जैसे मिर्च खाने से केवल खाने वाले व्यक्ति पर ही उसका प्रभाव पड़ता है परंतु उसी मिर्च को जलाने से बहुत लोगों पर उसकी तीक्ष्ण गंध का प्रभाव होता है।
इससे यह भी विदित होता है कि अग्नि में जल जाने से मिर्चों का नाश नहीं होता निश्चय ही उसका अस्तित्व अपने परिवर्तित रूप में वायु में बना रहता है।
इससे यह भी विदित होता है कि अग्नि में जल जाने से मिर्चों का नाश नहीं होता निश्चय ही उसका अस्तित्व अपने परिवर्तित रूप में वायु में बना रहता है।
यही बात यज्ञाग्नि में भस्म हुए पदार्थों की है। सूक्ष्म रूप में वे सदा आकाश में बने रहते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली में प्रयुक्त की जाने वाली बिभिन्न भस्में सूक्ष्मीकरण के सिद्धांत के आधार पर तैयार की जाती हैं। यदि हमारे शरीर को लौह खनिज की आवश्यकता होती है तो चिकित्सक लोहे को स्थूल रूप में नहीं देते हैं वह लोह भस्म देते हैं।जो औषधि का कार्य करती है।
जिस धातु में अग्नि की जितनी पुट होगी उतनी ही अधिक शक्तिशाली होगी।
यजुर्वेद का मंत्र....
अहुतमसि हविर्धानं.........यच्छनतां पञ्च।।(यजु०१/९)
अर्थात् अग्नि में डाला गया पदार्थ परिवर्तित होकर नैंनो कणों (Particles) के रूप में सूक्ष्म बन जाता है ।स्थूल होने से कोई भी पदार्थ वायुमंडल में नहीं फैल सकता।
पदार्थ सूक्ष्म होकर शक्तिशाली बन जाता है [(होम्योपैथी की दवाओं की पोटेंसी (शक्ति) का सिद्धांत भी नैंनो Particles की सूक्ष्मता के आधार पर ही है।)] और वातावरण में फैलकर वायु जल और आकाश को सुगंधमय बना देता है।
व्यापक किरणों वाला सूर्य भी उन सुगंधमयी औषधियुक्त हवियों को अंतरिक्ष में फैलाकर दुर्गंधादि दोषों का नाश करता हुआ वायु को शुद्ध और सुखकारक बनाताहै।
व्यापक किरणों वाला सूर्य भी उन सुगंधमयी औषधियुक्त हवियों को अंतरिक्ष में फैलाकर दुर्गंधादि दोषों का नाश करता हुआ वायु को शुद्ध और सुखकारक बनाताहै।
*यज्ञ द्वारा वायुमण्डल में ओजोन (O3) की व्रृद्धि होती है और ओजोन परत में छिद्र नहीं हो पाते* जिससे पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर नहीं आती और वे हानि नहीं कर पातीं।
यदि *हमें स्वस्थ रहना है और सभी को स्वस्थ रखना है,* रोगों से मुक्ति पानी है तो अपने घर-परिवार, गली-मोहल्ले या पार्क आदि में यज्ञ करना ही होगा वातावरण को शुद्ध करने का दूसरी कारगर व सर्वसुलभ कोई तकनीक (तरीका) ही नहीं है।
ऐसा करके आप न केवल अपनी संस्कृति का प्रचार करेंगे वरन मानवमात्र के कल्याण का पुण्य भी प्राप्त करेंगे।
अतः यह कार्य अभी से प्रारम्भ कर दें क्योंकि शुभ कर्म को देरी क्या?
खुद यज्ञ करें, दूसरों से करवायें तथा दूसरों को प्रेरित करें एवं जहांँ भी हो जैसे भी हो यज्ञ का प्रचार-प्रसार करने में समर्पित होकर सहायक और सहयोगी बनें।
यदि आपको यह सर्वकल्याणकारी, सर्व हितकारी प्रतीत हो तो आगे Forward करने में विलम्ब नहीं करना।
धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment